वृंदावन से बैलगाड़ी में आए थे जयपुर के आराध्य ‘गोविंददेव जी‘, सांगानेर के पास गोविंदपुरा में भी रहें कई महीनों तक
बात उस समय की हैं जब मुग़ल शासक औरंगजेब मंदिर एवं देवालयों को नष्ट कर रहा था तब चैतन्य महाप्रभु के शिष्य शिवराम गोस्वामी राधा गोविंद जी की चमत्कारी प्रतिमा को वृंदावन से बैलगाड़ी में बैठाकर सबसे पहले जयपुर के एक विधानसभा क्षेत्र एवं तहसील सांगानेर के गोविंदपुरा गांव पहुंचे थे। संरक्षक देवता गोविंदजी की मुर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था।
यह प्रतिमा पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र (पड़ पोते) व मथुरा नरेश ब्रजनाभ की बनवाई गई थी
तब जयपुर बसा नहीं था और आमेर जयपुर की राजधानी थी। महाराजा राम सिंह प्रथम को गोविंद के वृंदावन से गोविंदपुरा आने की सूचना मिली तब उन्होंने भगवान के लिए आमेर घाटी में कनक वृंदावन मंदिर बनवाना शुरु किया। निर्माण में करीब ढाई तीन साल लगे तब तक जयपुर के गोविंददेवजी ने गोविंदपुरा में निवास किया।
कनक वृंदावन मंदिर निर्माण के बाद राधा गोबिंददेवजी को कनक वृंदावन मंदिर में स्थापित करवाया गया।
जयपुर बसाने के बाद सन् १७७२ में सवाई जयसिंह द्वितीय ने राधा गोबिंददेवजी को कनक वृंदावन से लाकर सिटी पैलेस के सूरज महल में विराजमान किया।
राधारानी की सेवा के लिए विसाखा सखी को व बाद में सवाई प्रतापसिंह ने ललिता सखी की प्रतिमा को राधा गोविंद के सामने स्थापित करवाया
गोविंदपुरा में पिछले एक साल से गोविंददेव जी का भव्य मंदिर बनाने में सारा गांव जुटा है। करीब अस्सी लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। पार्षद नवरतन नराणिया के मुताबिक अयोध्या के राम मंदिर में लगने वाले बंशी पहाड़़पुर के लाल पत्थर से मंदिर बन रहा है।
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